Productivity & Management

एक ‘प्रोडक्टिव’ दिन के लिए

ऑफिस से निकला हूँ और घर की ओर कार ड्राइव करते हुए गुजर गए दिन की गतिविधियों पर सोच रहा हूँ. एक असंतुष्टि-सी मन में है. जितने काम निपटा सकता था उससे आधे ही ख़त्म कर सका. जबकि इससे कहीं अधिक कार्य-सूचि ख़त्म की जा सकती थी. फिर समस्या कहाँ रही?
जिन कारणों से कार्यक्षमता अनुरूप कार्य न हो पाए उनकी सूचि मन ही मन बनानी शुरू की और घर पहुंचते पहुंचते ‘करने और न करने’ की एक सूचि बन गई.

अब जरुरत थी उन नियमों पर अमल करने की, तो सोने से पहले अगले दिन की कार्य-सूची तैयार की. पहले इसके लिए डायरी का उपयोग करने का सोचा था, फिर गूगल कीप ऐप में अगले दिन के सभी काम लिख लिए.

जब अगले दिन ऑफिस पहुंचा तो दिन भर की कार्य सूचि सामने थी. अब अगला महत्त्वपूर्ण काम था, सोशल मीडिया के नोटिफिकेशन म्यूट करना. फिर मेल देखने के बाद मेल नोटिफिकेशन को भी म्यूट कर दिया.

तीसरा कदम यह था कि कार्यसूची में अतिजरुरी, जरुरी और कम महत्त्व के कार्यों की छंटनी की और कम रूचि वाले मगर जरूरी कामों को पहले निपटाया. फिर महत्त्व के हिसाब से वरीयता के अनुसार कार्य निपटाये.

इस बिच टी-ब्रेक को नहीं भुला. खिड़की से बाहर झांकते हुए चाय की चुस्कियों के बिच किसी पेड़ पर पक्षियों को ताकना, बिल्ली को दीवार फांदते हुए देखना, ‘रिचार्ज’ करने वाला होता है.

साथ ही मीटिंग के समय को कम किया और फालतू गप्पबाजी से बचते हुए मद्दे पर बना रहा. इससे काफी समय की बचत हुई.

एक और आदत में सुधार किया. एक साथ कई काम में हाथ डालना बंद किया. ‘मल्टीटास्किंग’ ज्यादा फलदायी नहीं होती. इससे अच्छा है, किसी काम को छोटे छोटे हिस्सों में बाँट कर निपटाना.

पढ़ना अच्छी आदत है, लेकिन ऑफिस के समय काम की लय को तोड़ते हुए ओन-लाइन ‘आर्टिकल’ पढ़ना कहाँ जरुरी है? कुछ ऐसा दिखा जिसे पढ़ा जाना चाहिए तो उसे मैंने ‘पॉकेट’ में सेव करना शुरू कर दिया. अब खाली समय में सेव किये लेखों को पढ़ता हूँ.

3 thoughts on “एक ‘प्रोडक्टिव’ दिन के लिए

  1. हम तो सेव से सेव ही समझे थे , सोचने लगे थे कि अब जायेगे तो संजय भाई जेब से सेव निकाल सेव टमाटर की सब्जी ख़िलाएगे , पर ये सेव तो मेमोरी सेव वाला सेव निकला , हम अब सेव ट्

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