ब्रांडेड वस्तुओं के प्रति दिवानगी क्या आज की पीढ़ी तक ही सीमित है? ना जी ना… खुद को विशिष्ट दिखाने की इच्छा तो सदा से रही है.
राडो, मोबला, नाइकी, गुसी.. अब अनजाने से ब्रांड नहीं रहे, इनके उपभोग में लग्जरी है, अहं की तुष्टी है, विशिष्टता का अहसास है. ऐसे ही देसी ब्रांड भी रहे हैं जिसने कभी भारतीयों को लग्जरीपन का अहसास करवाया था, हमारी जिंदगी के हिस्सा बन गए थे. बाजार में वे भारत की पहचान थे. उनका अस्तित्व आज भी है, मगर समृद्ध होते भारत के लिए अब शायद वे उतने लग्जरीपन का अहसास नहीं करवाते. ठीक है, भले ही न करवाए मगर अपनी विशिष्ट भारतीय पहचान के साथ आज भी हमारे दिल के करीब तो है हीं.
कपड़ों में रैमंड. शादी-ब्याह हो और सुट सिलवाना हो तो रैमंड के ब्रांडेड कपड़े का ही सिलवाने में मजा था/है. उच्च पदस्थ व्यक्ति हो या दुल्हे के पिता जैसा रूतबे वाला व्यक्ति हो, ‘कम्पलिट मैन’ के लिए रैमंड के कपड़े सिलवाना शान की बात रही है.
स्कूटर वही हमारा बजाज. ४५ डिग्री झुकाने पर स्टार्ट होने वाला बजाज स्कूटर. तब तेल से दौड़ने वाला वाहन भी भारतीयों के लिए सपना हुआ करता था. बजाज ‘हमारा’ हुआ करता था. हमारा बजाज.
फ्रीज बोले तो रेफ्रीजिरेटर. मगर कौन सा? गोदरेज का भई. भारतीयों के घरों तक खाने को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने वाली मशीन गोदरेज ने सुलभ करवाई. भारतीयों की लग्जरीपन की इच्छा को तुष्ट किया. याद करें लोग पूछा करते थे, क्या आपका फ्रीज फ्रोस्ट-फ्री है?
देश का मक्खन, अमूल… इसका राज तो आज भी कायम है. मक्खन क्या अमूल दूध भी पीता है इंडिया… आज भी इस ब्रांड को कोई चुनौती नहीं.
पोस्टमेन तेल. डबल रिफाइंड खाद्य तेल, हल्का पतला सफेद. सोई की शान और लग्जरी का अहसास अहसास करवाता पोस्टमेन तब अन्य तेलों की तुलना में महंगा था. इसलिए लग्जरी भी था.
टाइटन की घड़ियाँ. गिफ्ट देनी हो या शान से पहननी हो. टाइटन ने भारतीयों को लग्जरी का अहसास करवाया. महंगा गिफ्ट देना हो तो एक अच्छा विकल्प रही है, टायटन की घड़ी.
मारुति ‘फ्रंटी’. आम आदमी की कार. भले ही शरूआती दिनों में तेल लीक होता था, मगर कार के मालिक होने का पहला अहसास मारुति ८०० ने करवाया. एम्बेसडर और फियेट थी बाज़ार में, लेकिन सपने मारुति ने ही जगाए.
बात ऊनी की हो तो लाल इमली धारीवाल. याद आया कुछ. गुणवत्ता वाले ऊनी वस्त्र. बुज़ुर्ग लाल इमली की शाल पा कर गर्वित महसूस करते थे.
लिरिल साबून. ला..लाल्ल.ला…झरने में नहाती कन्या वाले विज्ञापन ने इसे लग्जरी बना दिया था. लाइफबोय और हमाम से नहाने वालों को लिरिल ने अलग अहसास दिया. हालांकि पियर्स अति-लग्जरी में सदा बनी रही.
रूकिये अभी तूफ़ानी ब्रांड तो बाकी है. थम्स-अप. एक तूफ़ानी कोला. जिसे अंततः खरीद लिया गया, मगर उसका जादू आज भी बरकरार है.
छवि ब्रांड कंसलटिंग, अहमदाबाद के संस्थापक। हिंदी में पहली पीढ़ी के जाने माने ब्लॉगर एवं वेब लेखक। वेब अनुप्रयोगों के हिंदीकरण में सक्रिय भूमिका। विज्ञान एवं तकनीक आधारित पुरस्कृत हिंदी पोर्टल ‘तरकश.कॉम’ के संपादक रहे। वेब पोर्टल निर्माण और रखरखाब के क्षेत्र में 10 साल से कार्यरत।